चम्पारण नीति/ बेतिया /पश्चिमी चम्पारण :पश्चिम चंपारण जिले में कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। कृषि विज्ञान केंद्र, माधोपुर के वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान डॉक्टर अभिषेक प्रताप सिंह ने बताया की कद्दू वर्गीय फसल लगाने से किसानों को कम समय में बेहतर मुनाफा मिलता है। हालांकि, हाल के दिनों में कद्दू वर्गीय सब्जी जैसे लौकी(कद्दू) समर स्क्वैश, जैसी फसल पर फल भेदक कीट (फ्रूट बोरर) का प्रकोप तेजी से बढ़ा है, जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है। फल भेदक कीट कद्दू वर्गी सब्जियों के फूलों और फलों को नुकसान पहुंचाकर फसल उत्पादन और गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
फल भेदक कीट की पहचान और नुकसान:-
कृषि विज्ञान केंद्र माधोपुर के पौधा संरक्षण विशेषज्ञ सौरभ दुबे ने बताया की फल भेदक कीट की मादा पतंग फलों और फूलों पर अंडे देती है। अंडे से निकले लार्वा फलों में घुसकर अंदर से उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। प्रभावित फल अंदर से सड़ने लगते हैं और जल्दी गिर जाते हैं। यह कीट रात में अधिक सक्रिय रहता है, जिससे दिन के समय इसका पता लगाना मुश्किल होता है।
प्राकृतिक प्रबंधन की आवश्यकता:-
रासायनिक कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसके बजाय, जैविक और प्राकृतिक तरीकों से फल भेदक कीट का प्रबंधन अधिक प्रभावी और सुरक्षित है।
फल भेदक कीट के जैविक प्रबंधन के उपाय:-
पैरा फेरोमोन ट्रैप्स का उपयोग:-
पैरा फेरोमोन ट्रैप्स लगाकर नर पतंगों को फँसाया जा सकता है, जिससे कीट का प्रजनन चक्र टूटता है। प्रति एकड़ 8-10 ट्रैप लगाना प्रभावी माना गया है।
नीम आधारित उत्पादों का छिड़काव:-
नीम तेल (5%) या नीम आधारित कीटनाशक का छिड़काव करें। यह लार्वा को नियंत्रित करने में मदद करता है।
गेंदाकार जाल (Fruit Fly Trap):-
फलों के आस-पास गेंदाकार जाल लगाकर वयस्क कीटों को फँसाया जा सकता है।
जैविक कीटनाशकों का उपयोग:-
बायो-कंट्रोल एजेंट जैसे बैसिलस थुरिंजिनेसिस या ब्यूवेरिया बैसियाना का छिड़काव करें।
ये जैविक उत्पाद कीट को नियंत्रित करने में प्रभावी हैं और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं।
सूरजमुखी और गेंदे का सहफसलीकरण:-
गेंदे और सूरजमुखी के पौधे को सह फसल के रूप में लगाएँ। ये पौधे कीटों को आकर्षित कर मुख्य फसल को बचाते हैं।
जब फल भेदक कीट का प्रकोप अत्यधिक हो और जैविक उपायों से पर्याप्त नियंत्रण न हो सके, तब रासायनिक प्रबंधन के तहत निम्नलिखित सिफारिशें अपनाई जा सकती
हैं। हालांकि, इन उपायों को सावधानी पूर्वक और अनुशंसित मात्रा में ही उपयोग करना चाहिए।
कीटनाशकों का उपयोग:-
*स्पिनोसैड 45% SC:*
1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। यह कीट के लार्वा को प्रभावी रूप से नष्ट करता है।
इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG:-
0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह कीटनाशक पेट और संपर्क प्रभाव से लार्वा को मारता है।
थायोक्लोप्रिड 21.7% SC:-
1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें। यह फल भेदक कीट पर प्रभावी है।
क्लोरपाइरीफॉस 20% EC:-
2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करें।
समय पर छिड़काव:-
कीट के जीवन चक्र और क्षति के स्तर को ध्यान में रखते हुए 7-10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।
फसल पर फूल आने और फल बनने के दौरान विशेष सतर्कता बरतें।
सुरक्षात्मक उपाय:-
रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग सुबह या शाम के समय करें।
छिड़काव के दौरान व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (दस्ताने, मास्क और चश्मा) पहनें।
अनुशंसित मात्रा और समय का पालन करें।
फसल कटाई का अंतराल:-
रासायनिक छिड़काव के बाद फसल कटाई में न्यूनतम 7-10 दिनों का अंतराल रखें ताकि कीटनाशक अवशेष (Residue) कम हो सके।
रासायनिक और जैविक प्रबंधन का संतुलन:-
रासायनिक प्रबंधन के साथ जैविक विधियों को मिलाकर अपनाना बेहतर परिणाम दे सकता है। इससे कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से बचा जा सकता है और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
कृषि विज्ञान केंद्र, माधोपुर की सलाह
डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह (वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख) ने बताया कि रासायनिक प्रबंधन के दौरान किसान निर्देशिका में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करें।
किसान किसी भी प्रकार की समस्या या सुझाव के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, माधोपुर से संपर्क कर सकते हैं। केंद्र द्वारा किसानों को सही मात्रा और समय पर कीटनाशकों के उपयोग की जानकारी दी जाती है।
अन्य कृषि अभ्यास:-
प्रभावित फलों और फूलों को तुरंत खेत से हटा दें और नष्ट कर दें।
फसल चक्र अपनाकर भूमि में कीट की संख्या कम की जा सकती है।
खेत की निगरानी:-
नियमित रूप से खेत का निरीक्षण करें और कीट के लक्षणों की पहचान करें।
नोट:-रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग अंतिम उपाय के रूप में करें और अनुशंसित मात्रा से अधिक उपयोग न करें। यह फसल की गुणवत्ता और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है!
कृषि विज्ञान केंद्र, माधोपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख, डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह ने बताया कि केंद्र द्वारा किसानों को जैविक प्रबंधन की तकनीकों की जानकारी दी जा रही है। इसके साथ ही, एसएमएस ( पौध संरक्षण) श्री सौरभ दुबे ने किसानों को खेतों का निरीक्षण करने और फसल सुरक्षा प्रबंधन में जैविक उपाय अपनाने की सलाह दी।
किसानों के लिए सलाह:-
किसानों को सलाह दी जाती है कि वे फल भेदक कीट के लक्षणों को पहचानें और उपरोक्त जैविक उपायों को अपनाकर अपनी फसल को सुरक्षित रखें। अधिक जानकारी के लिए किसान कृषि विज्ञान केंद्र, माधोपुर से संपर्क कर सकते हैं।
यह लेख किसानों को कद्दू वर्गीय फसल को फल भेदक कीट से सुरक्षा प्रदान करने में मदद करेगा।
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