चम्पारण का इतिहास!

चम्पारण का इतिहास!

                              चम्पारण का इतिहास 

 महाकाव्य काल से लेकर आज तक चम्पारण का इतिहास गौरवपूर्ण एवं महत्वपूर्ण रहा है। पुराण में वर्णित है कि यहाँ के राजा उत्तानपाद के पुत्र भक्त ध्रुव ने यहाँ के तपोवन नामक स्थान पर ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी। एक ओर चम्पारण की भूमि देवी सीता की शरणस्थली होने से पवित्र है, वहीं दूसरी ओर आधुनिक भारत में गाँधीजी का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है।

 राजा जनक के समय यह तिरहुय प्रदेश का अंग था। लोगों का ऐसा विश्वास है कि जानकीगढ़, जिसे चानकीगढ़ भी कहा जाता है, राजा जनक के विदेह प्रदेश की राजधानी थी, जो बाद में छठी सदी ईसापूर्व में वैशाली के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। भगवान बुध्द ने यहाँ अपना उपदेश दिया था। जिसकी याद में तीसरी सदी ईसापूर्व में प्रियदर्शी अशोक ने स्तंभ लगवाए और स्तूप का निर्माण कराया। गुप्त वंश तथा पाल वंश के पतन के बाद मिथिला सहित समूचा चम्पारण प्रदेश कर्नाट वंश के अधीन हो गया। मुसलमानों के अधीन होने तक तथा उसके बाद भी यहाँ स्थानीयक्षत्रपों का सीधा शासन रहा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय चम्पारण के ही एक रैयत एवं स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर महात्मा गांँधी अप्रैल 1917 में मोतिहारी आए और नील की फसल में लागू तीनकठिया खेतो के विरोध में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया। आजादी की लड़ाई में यह नए चरण की शुरुआत थी। बाद में भी बापू कई बार यहाँ आए। अंग्रेजों ने चम्पारण को सन 1866 में ही स्वतंत्र इकाई बनाया था। लेकिन 1971 में इसका विभाजन कर पश्चिमी चम्पारण तथा पूर्वी चम्पारण बना दिया गया।

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