सिकरहना नदी किनारे मिट्टी खनन तेज, पर्यावरणीय संकट गहराया – आंदोलन को नई धार

सिकरहना नदी किनारे मिट्टी खनन तेज, पर्यावरणीय संकट गहराया – आंदोलन को नई धार

बेतिया :सिकरहना नदी के किनारे तेज़ी से चल रहे मिट्टी खनन ने स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों की चिंता बढ़ा दी है। शुक्रवार को खींची गई तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि एक बड़ा जेसीबी मशीन ट्रक में मिट्टी भरते हुए सक्रिय रूप से नदी किनारे की खुदाई में लगा है। इस कार्य से नदी की पारिस्थितिकी, आसपास की खेती योग्य भूमि, और जल प्रवाह पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
ग्रामीणों ने बताया कि यह कार्य प्रशासन की जानकारी में है, फिर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। स्थानीय जनप्रतिनिधि और सामाजिक संगठनों ने “सिकरहना बचाओ आंदोलन” को और तेज़ करने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि यदि यह गतिविधि शीघ्र नहीं रुकी, तो नदी का प्राकृतिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ जाएगा।

प्रभाव और चेतावनी:

भू-क्षरण की आशंका: मिट्टी की अत्यधिक खुदाई से नदी किनारा कमजोर हो रहा है।
बाढ़ का खतरा: नदी के किनारे की गहराई बढ़ने से बरसात में बाढ़ आने की संभावना बढ़ गई है।
कृषि को नुकसान: किसानों की ज़मीनों में जलभराव और कटाव बढ़ गया है।
जैव विविधता पर संकट: नदी तटों पर रहने वाले जीव-जंतुओं का प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है।

प्रशासन मौन क्यों?

स्थानीय लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि ठेकेदारों और संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत से यह अवैध खनन निर्बाध रूप से चल रहा है। नदी संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण कानूनों की खुली अवहेलना की जा रही है।

सामाजिक संगठनों की मांग:

1. अविलंब खनन पर रोक लगाई जाए।

2. दोषी ठेकेदारों और अधिकारियों पर कार्रवाई हो।

3. नदी संरक्षण हेतु दीर्घकालिक नीति बनाई जाए।

4. सिकरहना को “संवेदनशील जल स्रोत” घोषित किया जाए।

रिपोर्ट:  जारी प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर समाचार संपादक -केआर राव 

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