खिड्डी के निर्मल ने किया लेह-लद्दाख का परिभ्रमण

खिड्डी के निर्मल ने किया लेह-लद्दाख का परिभ्रमण

रजौन (बांका):यूँ तो नए-नए स्थानों पर भ्रमण करना सबको पसंद है। नए-नए स्थानों पर घूमना व वहां के नई-नई चीजों को अपने आंखों से निकट से देखना हर किसी का स्वप्न होता है। भ्रमण करना हमारे जिंदगी का एक अहम हिस्सा भी है, लेकिन कभी-कभी इंसान लाचार होकर समय पर कहीं जा नहीं पाते तो किन्ही के पास समय व सामर्थ्य की बहुलता होने के बावजूद समुचित बजट या अन्य साधनों की कमी तो किसी के पास बजट या अन्य साधनों की समुचित व्यवस्था होने के बावजूद स्वास्थ्य या अन्य किसी निजी समस्या की वजह से समय पर भ्रमण करने जा नहीं पाते हैं। इसी बीच बांका जिले के रजौन प्रखंड के खिड्डी गांव के मंदारेश्वर प्रसाद सिंह के पुत्र निर्मल कुमार सिंह (24 वर्ष) ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। वे लेह-लद्दाख क्षेत्र का परिभ्रमण करने वाले जिले के रजौन प्रखंड के सबसे कम उम्र के पर्यटक हैं। इससे पूर्व रजौन प्रखंड के लीलातरी ग्राम निवासी गिरीश कुमार राव (42 वर्ष) लेह-लद्दाख 2009 से 2018 तक में पांच बार अकेले बाइक से घूमकर आ चुके हैं। वर्तमान में निर्मल दिल्ली में रह कर अध्ययन-अध्यापन का कार्य करते हैं। वे बचपन से ही घूमने-फिरने के काफी शौकीन हैं। वे उत्तर-पूर्वी भारत का भी भ्रमण कर चुके हैं। हाल ही में वे अपने अध्यापन कार्य से 12 दिन का समय निकाल कर अपने चार अन्य साथियों के साथ लेह-लद्दाख घूम कर आए हैं। निर्मल ने बातचीत के क्रम में बताया कि 5 सदस्यीय लोगों के समूह में उनके साथ एक डीएसपी रैंक की अधिकारी, एक व्यवसाई व कॉलेज के सहपाठी शामिल थे। 29 सितंबर को ये लोग दिल्ली से प्रारंभ करके अमृतसर, जम्मू, सोनमर्ग, लामायुरू, लेह, डिसकित, पैंगोंग लेक, त्सो मोरीरि, सरचू तथा मनाली होते हुए 10 अक्टूबर को मध्य रात्रि दिल्ली पहुंचकर परिभ्रमण यात्रा का समापन हुआ। अपने यात्रा का सुखद अनुभव बताते हुए निर्मल कहते हैं कि हमें स्वयं में बदलाव लाने के लिए तथा देश के अलग-अलग हिस्से में बसे लोगों को बेहतर तरीके से समझने के लिए हर स्थानों का परिभ्रमण करना चाहिए। उन्होंने लेह-लद्दाख को धरती का बहुत ही खूबसूरत जगह बताते हुए कहा कि यहाँ दिन में ऊँचे-ऊँचे बर्फ से ढके पहाड़ और रात में आसमान में पूरी आकाशगंगा दिखाई देती है। लामायुरू को मूनलैंड भी कहा जाता है, जहाँ पूर्णिमा की रात्रि को जमीन चांद के जमीन जैसी दिखती है। वहीं, पैंगोंग झील की सुंदरता तो विश्व प्रसिद्ध है। 12 दिन के सफर में 3500 किलोमीटर की यात्रा, 9 पहाड़ी दर्रे जैसे कि जोजिला पास, खार दुंग ला पास, चांग ला पास इत्यादि को पार करते हुए 3 झील जैसे सुरजताल, चंद्रताल और पैंगोंग झील के दर्शन का अनुभव शानदार रहा। वहीं, रास्ता बंद रहने के कारण सबसे महत्वपूर्ण उमिंग ला पास नहीं जाने का उन्हें काफी अफसोस भी रहा।

रिपोर्ट: केआर राव 

Post a Comment

1 Comments

आप सभी हमें अपना कॉमेंट / संदेश भेज सकते हैं...