आखिर क्यों नाराज हैं आजम खान अखिलेश यादव से..........

आखिर क्यों नाराज हैं आजम खान अखिलेश यादव से..........


उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का विबुल बज गया है सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली हैं.सभी पर्टियां चुनाव से पहले टिकट का बटवारा कर रहीं है. टिकट के बटवारे को लेकर समाजवादी पार्टी के भीतर अंर्तद्वंद चल रहा है. आजम खान मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं. इसके वाबजूद भी  आजम खान और अखिलेश यादव में अनबन की खबर सामने आई है. इसका कारण टिकट की मांग को बताया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक जेल में बंद आजम खान ने अखिलेश से अपने 12 समर्थकों के लिए टिकट की मांग की थी. लेकिन अखिलेश यादव ने साफ मना कर दिया और नतीजा  ये हुआ कि आजम खान नाराज हो गए और आजम खान अब इमरान मसूद, कादिर राणा जैसे नेताओं के संपर्क में हैं.

आजम का इतिहास

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान मौजूदा समय में रामपुर लोकसभा सीट से सांसद हैं. आजम खान रामपुर विधानसभा सीट पर 9 बार जीत दर्ज करके विधायक रह चुके हैं. इसके साथ ही प्रदेश में जब जब सपा सरकार आई तब तक आजम खान मंत्री भी रहे. वह तीन बार सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. 

आजम खान जेल से लडेंगे चुनाव

आजम खान आजकल सीतापुर जेल में बंद हैं. जैसे- जैसे चुनाव नजदीक आ रहें हैं. वैसे- वैसे आजम खान के चुनाव लड़ने को लेकर कयास लगना भी शुरु हो गया है. सूत्रों की माने तो आजम खान इस बार जेल से ही चुनाव लड़ सकते हैं. वहीं उनके समर्थकों का मानना है कि बहुत जल्द आजम खान जमानत पर बाहर आकर चुनाव लड़ेंगे. रामपुर के समीकरण की बात करें तो 50% से ज्यादा आबादी मुस्लिम बाहुल्य हैं. लगभग 45% हिंदू और 3 से 4% सिख ईसाई बौद्ध जैन और अन्य आबादी है.

आपात काल के दैरान शुरु हुआ आजम का सफर

कांग्रेस के शासन काल के दौरान जब आपातकाल लगा था. तब आपातकाल के विरोध में तमाम छोटे-बड़े नेताओं में आज़म खान भी जेल में रहे. उनका राजनैतिक संधर्ष काफी लंबा रहा है. उनके खिलाफ न जाने कितने ही केस दर्ज किए गए. और आजकल वो जेल की सलाखों में हैं. ऐसा तो हम उम्मीद कर ही सकते हैं कि शासन की इन कार्यवाहियों से उनका वह पुराना इतिहास नहीं धुल जाएगा जिसमें वे रामपुर और आस-पास की राजनीति का चेहरा बदल देने वाले नायक के तौर पर नजर आते हैं.

रामपुर की राजनीति में आजम खान बनने की शुरुआत तब होती है जब वे अलीगढ़ मुस्लिम युनिर्वसिटी के छात्र संघ के महासचिव चुने गए थे. वो साल था 1974 का. उसी समय कांग्रेस के शाषन काल में आपातकाल लगा और आजम के कांग्रेस विरोधी रवैये होने की वजह से उन्हें भी सलाखों के पीछे भेज दिया गया. आपातकाल के दौरान जब अधिकतर नेताओं को राजनीतिक कैदी का दर्जा देकर ज्यादा परेसान किए बिना जेल में रखा गया था, वहीं आजम खान उन खास लोगों में शामिल थे, जिन्हें पांच गुणा आठ फीट की ऐसी काले कोठरी में डाला गया था जिसमें सूर्य की एक किरण भी नहीं जाती थी. हालाकि उस समय वो छात्र थे, जिस वजह से उन्हें जेल में बी क्लास की सुविधा मिली. इसका परिणाम ये रहा कि विरोध करने का दंड़ केवल आजम खान को ही नहीं मिला, बल्कि उनके पूरे परिवार को भी झेलनी पड़ी थी. उनके इंजीनियर भाई शरीफ खां पर उस दौरान नौकरी छोड़ने का दबाव बनाया गया था. बहरहाल, छात्र राजनीति और जेल से शुरू हुई आजम की असली राजनीतिक पहचान नवाबी राजनीति के विरोध को लेकर रहा.

रामपुर की राजनीति मे आजम खान

आपातकाल के खत्म होने पर जेल से छूटने के बाद आजम खान का कद बढ़ गया, लेकिन उनकी आर्थिक स्थित नहीं सुधरी. उनके पिता मुमताज खान शहर में एक छोटा-सा टाइपिंग सेंटर चलाते थे. आज़म खान जेल से आते ही विधानसभा चुनाव लड़ गए, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण कांग्रेस के मंज़ूर अली खान से हार गए. इसके बाद ही वो रामपुर के नवाब खानदान से टकराने लगे. रामपुर के नवाब यूसुफ अली ने 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों का साथ दिया था. लेकिन, बदलते समय के साथ वो राजनीति में आ गए. उन्हें 1967 में कांग्रेस के टिकट पर उन्हीं के वारिस मिकी मियां के नाम से चर्चित जुल्फिकार अली खान सांसद बने. बाकी रजवाड़ों की तरह रामपुर का नवाबी खानदान भी राजनीति में आते ही अपनी धाक जमाने में सफल रहा. मिकी मियां तो 1967, 1971, 1980, 1984 और 1989 में सांसद बने ही, उनकी मौत के बाद 1996 और 1999 में उनकी पत्नी बेगम नूर बानो सांसद बनी.

नवाब खानदान को दिया टक्कर

नवाबी खानदान की राजनीति के दौर में उन्हें चुनौती देने वाले आजम खान ही थे, जो गरीब घर से आते थे और मजदूरों, पिछड़ो  में अपनी लोकप्रियता को बढाते जा रहे थे. रामपुर लोकसभा में जहां मिकी मियां सफलता हासिल कर रहे थे और बार- बार सांसद चुने जा रहे थे. वहीं विधानसभा चुनावों में आजम भी जीतने लगे थे और विधायक चुने जाने लगे थे.

अंग्रेजी सरकार के विरोध में अपनी आवाज को बुलंद करने के प्रतीक रहे पत्रकार और शायर मौलाना मोहम्मद जौहर अली को अंग्रेज-परस्त नवाबी खानदान ने भी काफी प्रताड़ित किया था. आजम खान ने मोहम्मद जौहर अली के काम को प्रचारित करने का जो फैसला किया वो अब भी चल रहा है. आजम की जिस विश्विविधालय पर मौजूदा सरकार की निगाह हैं. वह इन्हीं जौहर अली के नाम पर है. अली जौहर प्रमुख शिक्षाविद थे और जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना उन्होंने ही की थी. वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे. राउंड टेबल कांफ्रेंस में मोहम्मद जौहर अली का बयान काफी चर्चित है कि, " हमें आजादी दे दो या फिर कब्र के लिए दो गज जमीन दे दो." साल 2003 में यूपी की राजनीति में बदलाव का दौर शुरु हुआ,यूपी में सपा सरकार बनी. सपा सरकार के बनने के बाद ही आजम खान ने मौलाना अली जौहर ट्रस्ट बनाया और फिर इस यूनिवर्सिटी के निर्माण की शुरुआत कर दी.

यूपी की राजनीति नए अध्याय को अपने इतिहास में जोड़ने जा रही थी. जैसे-जैसे आजम खान मजबूत होते जा रहे थे,  वैसे-वैसे रामपुर के नवाब खानदान की राजनीति कमजोर पड़ती जा रही थी. रामपुर के इस इलाके में सपा का असर बढ़ता चला गया. सपा की इलाके में पकड़ का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जब 2004 में सपा ने हीरोइन जया प्रदा को यहां चुनाव में खड़ा किया तो वो यहा से जीत गईं.

राजनितिक बजूद को बचाने में जुटी नवाबी खानदान

2014 की मोदी लहर में भी भाजपा रामपुर से मामूली अंतर से ही जीत सकी, लेकिन यह तय हो गया कि नवाब खानदान की सियासत के दिन गुजर गए हैं. कांग्रेस के टिकट पर खड़े नवाब काज़िम अली खान को तकरीबन 16 प्रतिशत वोट ही मिले और वे तीसरे नंबर पर रहे. नवाबी खानदान की राजनीति 2019 में और सिमट गई. कांग्रेस ने भी नवाब के खानदान को टिकट नहीं दिया. कांग्रेस ने संजय कपूर को टिकट दिया जो केवल 35 हजार वोट पा सके थे, जबकि आजम खान 5 लाख 59 हजार वोट पाकर सांसद बने. कभी उन्हीं के पार्टी में रहीं जया प्रदा भाजपा के टिकट पर लड़कर 4 लाख 49 हजार वोट ही पा सकीं. आजम खान अब रामपुर के सांसद हैं, और पत्नी तंजीम फातिमा राज्यसभा सांसद हैं. नवाब खानदान के पास 20 साल रही स्वार विधानसभा सीट पर भी अब आजम खान के बेटे अब्दुल्ला विधायक हैं. रामपुर से नवाब खानदान ही नहीं, कांग्रेस तक साफ हो चुकी है.

अब सत्ता में न होते हुए भी आजम खान रामपुर के आजम हैं, और उनका यही रसूख भाजपा को अखर रहा है. मंदिर आंदोलन के बाद आजम सपा की मुस्लिम राजनीति के भी चेहरे बन गए. लेकिन उनकी कभी सांप्रदायिक छवि नहीं रही. रामपुर शहर के विकास में उनकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. बीजेपी की यूपी में कई बार सरकारें रहीं, लेकिन बीजेपी का कोई नेता आज तक जौहर यूनिवर्सिटी जैसा कोई शिक्षा संस्थान नहीं बना पाया, जहां हर धर्म के हजारों विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहें हो. इसी वजह से उनको प्रताड़ित करके भाजपा अपने कट्टर समर्थकों को भी खुश करना चाहती है. यही सब कारण हैं कि आज आजम खान जेल की सलखों के पीछे हैं.

लेखक परिचय -:

युवा पत्रकार, प्रणव तिवारी



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