परिवार को राष्ट्र व राष्ट्र को परिवार समझने की आवश्यकता : विष्णु त्रिपाठी*

परिवार को राष्ट्र व राष्ट्र को परिवार समझने की आवश्यकता : विष्णु त्रिपाठी*

पटना: लोकतंत्र और नागरिक कर्तव्य को समग्रता में समझने की आवश्यकता है। इसके लिए एक सरल सूत्र है कि हम अपने परिवार को राष्ट्र व राष्ट्र को परिवार समझने की पहल शुरू करें। इससे भारतवर्ष के सही चिंतन का मार्ग प्रशस्त होता है। उक्त विचार दैनिक जागरण समूह के कार्यकारी संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने शनिवार को पटना के बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन में आयोजित आद्य पत्रकार देवर्षि नारद स्मृति कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कही।  

'लोकतंत्र और नागरिक कर्तव्यबोध' विषयक संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पत्रकारिता को पेशा के स्थान पर उद्यम कहना अधिक तर्कसंगत होगा। उद्यम में कर्मशील होने का भाव है। हमारे संस्कृति में दान के बदले प्रतिदान की अपेक्षा नहीं रही है और ना ही हमारे समाज में फ्रीबीज़ का भाव रहा है। हमारे पूर्वजों ने कहा है कि दान कुपात्र को नहीं देना चाहिए। यहां देने नजरें नीची कर दान देता है, अपना प्रचार नहीं करता। 

भारत के लोग स्वभाव से उद्यमशील रहे हैं। मिथिला के राजा जनक हल चलाते थे। हलधर बलराम कुशल कृषि विशेषज्ञ थे। भगवान श्रीकृष्ण गोधन को उद्यम बनाने का संदेश देते हैं। अंग्रेजों के आने के पहले तक भारत का हर गांव अपने आप में स्वतंत्र अर्थव्यवस्था थी। लेकिन, मैकाले की शिक्षा नीति ने हमें उद्यमिता छोड़कर नौकरी करने वाला नौकर बना दिया। 

नारद व पत्रकारिता का रूपायन करने वाली संस्था विश्व संवाद केंद्र असाधारण संस्था है। नारद का शब्दार्थ जल देने वाला है। वाल्मीकि रामायण से पता चलता ​है कि समय के साथ शब्दों के अर्थ बदलते हैं। जल यानी पारदर्शिता और पारदर्शिता से शुचिता व पवित्रता आती है। फिर इससे ज्ञान आता है। नारद ज्ञान का दान करते हैं, कर्म की ओर प्रेरित करते हैं। वे सदा चलायमान रहते हैं। उनके हाथ में करताल सुर व लय का संदेश देता है। कॉपीराइटिंग में वैसा ही सुर व लय होना चाहिए। 

अध्यक्षीय संबोधन में बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रो. अरुण भगत ने जेसिका लाल हत्याकांड, घोटाले व अन्य उदाहरण देकर बताया कि पत्रकारिता में इतनी शक्ति है कि वह एक साथ विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका तीनों को मार्ग दिखाती है। जब लोग सरकारी तंत्र से निराश होते हैं, तो पत्रकारिता की ओर आशा  से देखते हैं। 

विषय प्रवेश कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकांत ओझा ने कहा कि राष्ट्रीयता व नागरिकता एक जैसे शब्द प्रतीत होते हुए भी भिन्न अर्थ धारण करते हैं। राष्ट्रीयता हमें एक सिद्धांत देती है, वहीं नागरिका उसका ढांचा उपलब्ध कराती है। स्वागत संबोधन में विश्व संवाद केंद्र के सचिव डॉ. संजीव चौरसिया ने बताया कि विगत 25 वर्षों से इस संस्था ने पत्रकारिता की मूल्यों के संवर्धन लिए प्रयासरत है। इस कड़ी में पत्रकारों को सम्मान देना, मीडिया से जुड़े विषयों पर विमर्श का आयोजन तथा स्मारिका का प्रकाशन करना शामिल है। धन्यवाद ज्ञापन विश्व संवाद केंद्र न्यास के अध्यक्ष श्रीप्रकाश नारायण सिंह ने किया।

इस अवसर पर समर्पित पत्रकारिता के लिए देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद पत्रकारिता सम्मान बीबीसी के पूर्व संवाददाता मणिकांत ठाकुर को, एक्सक्लुसिव रिपोर्टिंग के लिए केशवराम भट्ट पत्रकारिता सम्मान दैनिक भास्कर की युवा पत्रकार निधि तिवारी को तथा बाबूराव पटेल रचनाधार्मिता दैनिक जागरण के छायाकार बीरेंद्र विश्वकर्मा को प्रदान किया गया।
रिपोर्ट:केआर राव

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