मत्स्य पालकों के लिए एडभायजरी जारी: केवीके,माधोपुर

मत्स्य पालकों के लिए एडभायजरी जारी: केवीके,माधोपुर



चम्पारण नीति/ बेतिया(प.च.)
 सर्दी के मौसूम मे मत्स्य तालब का रख-रखाव एवं रोग प्रबंधन विषयक आवश्यक सलाह।
मछली एक जलीय जीव है, अतएव उसके जीवन पर आस-पास के वातावरण की बदलती परिस्थतियां बहुत असरदायक हो सकती हैं। मछली के आस-पास का पर्यावरण उसके अनुकूल रहना अत्यंत आवशयक है। सर्दियों के दिनों में तालाब की परिस्थिति भिन्न हो जाती है तथा तापमान कम होने के कारण मछलियाँ तालाब की तली में ज्यादा समय व्यतीत करती हैं। मछली पालन व्यवसाय में मछली और तालाबों की देखरेख एवं प्रबंधन की सर्दियों के मौसम में खास जरूरत होती है। ज्यादातर मत्स्य पालक इस मौसम में खास ध्यान नहीं रखते हैं। जितनी भी लागत लगाते हैं मत्स्य पालक वह उससे मुनाफा ज्यादा नहीं कमा पाते हैं  "सर्दियों के मौसम में किए जाने वाले प्रबंधन के अभाव में तालाब में ऑक्सीजन की कमी एवं तापमान कमी हो जाती है, जिससे मछलियां आहार कम ग्रहण करती है। इसका प्रभाव मछलियों की वृध्दि दर पर पड़ता है। कभी-कभी मछलियों में भारी संख्या में मृत्यु देखा जाता है। ऐसा बताते हैं, माधोपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र पश्चिमी चंपारण डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉक्टर अभिषेक प्रताप सिंह एवं विषय वस्तु विशेषज्ञ मत्स्य डॉ जग पाल।
उन्होंने बताया कि सर्दियों में कोहरे एवं बादल की वजह से मत्स्य तालाबों में समुचित सूर्य का प्रकाश नहीं मिल पाता है। जिसके कारण जलीय पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कम हो जाती है। फलस्वरूप तालाब में घुलित ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। तालाबों में ऑक्सीजन की मात्रा 5 पीपीएम आवश्यक होती है। ऐसी स्थिति में मत्स्य पालक जब तालाब में देखें की मछलियां ऊपर की सतह पर आकर अपना मुंह पानी के ऊपर निकाल रही हैं। तो मत्स्य पालक को समझ जाना चाहिए की पानी में ऑक्सीजन की कमी हो गई है। ऐसी स्थिति में पानी को डंडे से पीटकर या मानव श्रम द्वारा पानी में उथल-पुथल करने से वातावरण की ऑक्सीजन पानी में घुल जाती है। ताजे पानी के फव्वारे के रूप में तालाब में डालने से ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है साथ ही सर्दियों के मौसम में मछलियां सुस्त हो जाने से उनमें गतिविधियां भी कम हो जाती है, जिसकी वजह से वह ज्यादा आहार नहीं ग्रहण करती है। इसके लिए  मत्स्य किसानों को तालाब में 15 से 20  दिन पर थोड़ा ताजा पानी डालना चाहिए। दूसरी तरफ तालाब में जमा पानी का लगभग एक चौथाई या उससे कम पानी निकाल देना चाहिए और ताजा पानी को डालते रहना चाहिए। पानी को तालाब के उचाई से डालना चाहिए जिससे उसमें घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में बढ़ोतरी होती है किसानों के पास अगर एरेटर की सुविधा है तो प्रतिदिन 1 से 2 घंटे चलाना चाहिए जिससे उस में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि होती है तथा यह मछलियों के विकास में मददगार होता है साथ ही समय-समय पर तालाब में जाल चलाकर देखते रहना चाहिए कि मछली स्वस्थ और ठीक है या नहीं।
इस मौसम में पानी 7-8 फिट से कम नही रहे।  तापमान को ठंडा होने से बचाने के लिए प्रति दिन बोरिंग के पानी को तालाब में डालने का प्रयास करें। ठंड में मछलियों को भोजन कम रखे ठंड के मौसम में मछलियों को सामान्य से कम मात्रा में भोजन देना चाहिए। प्रति किलोग्राम मछली को केवल 20 ग्राम ही भोजन देना चाहिए। पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए तालाब में 15 दिनों के अंतराल पर तालाब में चूने का प्रयोग करें। 
सर्दियों के मौसूम में मछलियों को होने वाले रोग:-
मछली के आस-पास का पर्यावरण उसके अनुकूल रहना अत्यंत आवशयक है। सर्दी के समय मे तालाब में मछली निचली सतह में रहने के कारण उनमें रोग/ बीमारी होने संभावनाएं बढ़ जाती है साथ ही इनका सही समय पर उपचार नहीं करने से कुछ ही दिनों में पूरे पोखर की मछलियाँ संक्रमित हो जाती हैं और बड़े पैमाने पर मछलियाँ मरने लगती हैं जिसका असर उत्पादन पर व्यापक रूप से पड़ता है । ऐसे में कुछ प्रमुख बीमारियां हैं जो मत्स्य किसानों को खासकर ध्यान रखना चाहिए जैसे कि आरगुलेसिस इस रोग मे शरीर पर लाल छोटे-छोटे ध्ब्बे के साथ मछलियां शरीर को तालाब के किनारे घेसनी लगती हैं। इसके उपचार के लिय 35 एम०एल० साइपरमेथिन दवा 100 लीटर पानी में घोलकर 1 हे० की दर से तालाब में 5-5 दिन के अन्तर में तीन बार प्रयोग करे या तो सीo आईo एफ़o आरo आईo agrcure 50 एम०एल०/एकड़ की दर से प्रयोग कर सकते है। उपरोक्त दवाइयां के लिए विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लेंI

ई०यू०एस० (ऐपिजुऑटिव) अल्सरेटिव सिन्ड्रोम इस बीमारी में शुरुआती अवस्था में लाल दाग मछली के शरीर पर पाये जाते हैं जो की धीरे-धीरे गहरे होकर सड़ने लगते हैं। मछलियों के पेट सिर तथा पूंछ पर भी अल्सर पाए जाते हैं। अन्त में मछली की मृत्यु हो जाती है। यह बीमारी सर्दियों के मौसम में ही ज्यादा देखा जाता है जब तापमान काफी कम हो जाता है। सबसे पहले तालाब में रहने वाली जंगली मछलियों यथा पोठिया, गरई, मांगुर, गईची आदि में यह बीमारी आती है। अतएव जैसे ही इन मछलियों में यह बीमारी नजर आने लगे तो मत्स्यपालकों को सावधान हो जाना चाहिए। इसके उपचार के लिए विशेषज्ञ की राय से सीफेक्स 1 लीटर प्रति हेक्टेयर  की दर से प्रयोग कर सकते हैं।

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